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तुमसे मुझको प्यार कहाँ

तुमसे मुझको प्यार कहाँ



अधर मेरे कभी कह नहीं सकते

तुमसे मुझको प्यार कहां है

तुम ही बोलो क्या कह सकती हूं

तुमको मेरी परवाह नहीं है

कहने को कुछ भी कह देना

तुमसे ही मैंने जाना प्रेम क्या है

 सच्चा रिश्ता पावन हमारा है

एक नहीं कई अवसर आए

जब जब तुम ही साथ थे मेरे

तुम ही बोलो क्या कह सकती हूं

तुमसे मुझको प्यार कहां है

जब भी रूठ कहीं मैं जाती

तुमने ही हर बार मुझको मनाया

अपने हृदय लगाकर तुमने ही तो

सारी शिकायत पल में दूर करी है

जब भी मुश्किल सम्मुख आयी है

दृढ़ता से तुम मेरे साथ खड़े थे

तुम ही बोलो क्या कह सकती हूं

तुमसे मुझको प्यार कहां है

भरोसा मेरा तुम पर इतना है

जितना धरा को गगन पर विश्वास

जब भी कभी घाव लगे मुझको

स्नेह का लेप तुमने ही लगाया मुझको

तुमसे प्रेम कितना है मुझको

शब्दों में बतलाना मुश्किल बहुत है

अपने गुलशन को मिलकर हमने सजाया

तुम ही बोलो क्या कह सकती हूं

तुमसे मुझको प्यार कहां है


स्वरचित एवं मौलिक रचना


      अनुराधा प्रियदर्शिनी

     प्रयागराज उत्तर प्रदेश


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8 Comments

Muskan Malik

07-Sep-2022 08:44 PM

Nice

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Achha likha hai 💐🙏

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Ajay Tiwari

04-Sep-2022 08:16 AM

Very nice

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